काला धन भी उजला होकर डोलेगा

काला धन भी उजला होकर डोलेगा 

गीत✍️- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट 

अपनेपन का नाटक करने वालों का 
कच्चा चिट्ठा कौन भला अब खोलेगा
मानवता की सेवा में चतुराई से
काला धन भी उजला होकर डोलेगा।
🌹🌹
जनहित की बातों का तो अब क्या कहना
झूठे वादों में फँसकर पीड़ा सहना
बनीं योजनाएँ जाने किसके हित में
निर्बल को तो बस आँसू पीकर रहना
🌹🌹
समरसता में भेद-भाव जब घुस जाए
तिकड़म के विपरीत कौन फिर बोलेगा
मानवता की सेवा में चतुराई से
काला धन भी उजला होकर डोलेगा।
🌹🌹
कथनी- करनी में अंतर जब से आया
दुष्टों ने बस सबके मन को बहलाया
कूटनीति की चाल करे खिलवाड़ यहाँ
जिसने लाचारों को इतना दहलाया
🌹🌹
होगा फिर उपहास यहाँ पर कितनों का
पैसे वाला जब निर्धन को तोलेगा
मानवता की सेवा में चतुराई से
काला धन भी उजला होकर डोलेगा।
🌹🌹
लोग गधे को बाप बनाते मतलब से
उसके बाद घास उसको वे क्यों डालें 
जिसकी लाठी भैंस उसी की होती है
यही भाव तो वे अपने मन में पालें
🌹🌹
जैसी हवा, पीठ वैसी करने वाला
बहती गंगा में पापों को धो लेगा
मानवता की सेवा में चतुराई से
काला धन भी उजला होकर डोलेगा।
🌹🌹
आस्तीन के साँप जहाँ पर भी पलते
 सच्चे मानव से वे अब कितना जलते
भाई-चारे की बातों में जहर घुला
सद्भावों का पहन मुखौटा वे छलते
🌹🌹
चालाकी से जो मिठास को बाँट रहा
सीधा-सादा साथ उसी के हो लेगा
मानवता की सेवा में चतुराई से
काला धन भी उजला होकर डोलेगा।
🌹🌹
 'कुमुद-निवास' 
              बरेली (उ० प्र०)
 मोबा०- 98379 44187

   20
2 Comments

Wahhhh wahhhh,,, खूबसूरत और बेहतरीन अभिव्यक्ति और यथार्थ चित्रण

Reply

Muskan khan

08-Jul-2023 08:59 PM

Nice

Reply